जुनून और कुछ नहीं बल्कि शुद्ध प्रेम के बेहतरीन हिस्से से बनता है।
– विलियम शेक्सपियर
केसर घर आई हुई है क्योंकि उसकी गर्मी की छुट्टियाँ हैं। वह बोर्डिंग स्कूल में पढ़ती है। मैंने उसे प्राकृतिक रूप से ही जन्म दिया, मैं उसकी सगी माँ हूँ, फिर भी कुछ ऐसा है जो मुझे उसे देखने या उससे बात करने पर असहज करता है। कुछ ऐसा है जो हमारे रिश्ते को सामान्य नहीं होने दे रहा है। हमारे अतीत में जो हुआ, केसर उसके बारे में पूरी तरह अनजान थी, और मेरी ज़िंदगी में जो हुआ उसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
17 साल पहले:
मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा जीवन नरक में बदल जाएगा, लेकिन समय के साथ अहसास हुआ कि उसका प्यार मुझे एक ही समय पर स्वर्ग और नरक, दोनों का अहसास करा रहा था। मुझे स्वर्ग में जीना था या नरक में, यह सब मेरी सोच पर निर्भर था। मेरे और मेरे पति केदार के बीच की कैमिस्ट्री काम नहीं कर रही थी।
वह बिना किसी की परवाह किए एक अन्य लड़की के प्यार में गिरफ़्तार थे। आपस में लड़ना-झगड़ना, चीखना-चिल्लाना और एक-दूसरे को प्रताड़ित करना हमारी दिनचर्या बन चुकी थी। कई महीनों तक हमारे बीच तनातनी रही। किसी और मुद्दे पर बात नहीं कर सके। लेकिन अचानक सबकुछ बदल गया। उन्होंने मेरे किसी भी सवाल का जवाब देना बंद कर दिया। मेरे द्वारा लगाए जा रहे आरोप और अन्य सभी बातों के लिए उनकी तरफ़ से कोई भी प्रतिक्रिया आनी बंद हो गई, एकदम शांत रहते।
मैं उनके इस परिवर्तित व्यवहार के कारण का अनुमान नहीं लगा सकी। उन्होंने घर पर ही शराब और सिगरेट पीना शुरू कर दिया था जो पहले कभी नहीं किया था। कभी-कभी यह पूरे दिन जारी रहता था। एक से दूसरी, दूसरी से तीसरी सिगरेट सुलगती रहती। वह पहले भी पीते थे, लेकिन घर पर नहीं। तलब होती तो घर के बाहर जाकर ही पीते। हमेशा इस बात का ध्यान रखते कि मुझे धुआँ बर्दाश्त नहीं होता है, लेकिन अब यह ध्यान रखना भी छूट गया था। अपनी ही दुनिया में खोए रहते।
पहले मुझे लगा कि यह उनके ब्रेकअप के कारण हुआ था। रिश्ते छूट तो जाते हैं किंतु रिश्तों के बंधन नहीं। वह उससे उपजे प्रभाव से छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे थे। हालाँकि इस निष्कर्ष पर पहुँचना मेरी सबसे बड़ी भूल थी। समय के साथ समझ आने लगा कि वह किसी भी चीज़ से छुटकारा पाने की कोशिश नहीं थी, बल्कि वो उस रिश्ते में डूबते जा रहे थे। जब तक मैं समझती तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
कभी-कभी हम बात करते थे, लेकिन अब हमारे बीच सामान्य बातचीत की कोई जगह नहीं थी। उनके जवाब हमेशा छोटे होते, ज़्यादातर हाँ या ना में, लेकिन मैं ख़ुश थी कि केदार मेरे साथ थे। ये वे दिन थे जब उनकी सोच उन पर सवार रहती थी। अपनी ही धुन में मग्न रहते। मुझे लगता कि समय सबकुछ ठीक कर देगा पर जल्दी ही महसूस हुआ कि केदार की सोच ही, उनकी दुनिया में अस्तित्व बना रही थी। केदार हर चीज़ में दिलचस्पी खोते जा रहे थे। वह जो भी बात करते थे, वह तर्कहीन, निराशा और नकारात्मकता से भरी होती थी। फिर कभी ऐसा लगता कि मैं ही उनके बारे में ग़लत सोच रही हूँ।
समय के साथ यह साफ़ होने लगा कि वह ख़ुद को किसी अपराध के लिए दंडित कर रहे हैं, लेकिन इसके बारे में उन्होंने कभी बात नहीं की। मुझे लगने लगा था कि मुझे धोखा देने का अपराधबोध उन्हें परेशान कर रहा था। वह मुझसे बहुत कुछ छुपा रहे थे। मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी। केदार की हालत में सुधर न आता देख मैं उन्हें एक डॉक्टर के पास ले गई जिसने मुझे एक मनोचिकित्सक से परामर्श करने का सुझाव दिया। यह मेरे लिए एक बड़ी चिंता थी, लेकिन मुझे करना ही था, इसलिए मैंने एक मनोचिकित्सक से सलाह ली। केदार ने कोई ना-नुकर न की और चुपचाप मेरे साथ चल दिए।
हमने डॉक्टर के केबिन में प्रवेश किया और उसके सामने कुर्सी पर बैठ गए। डॉक्टर ने केदार को देखा और कुछ सवाल पूछे, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। पूरे समय चुप ही रहे। डॉक्टर ने केदार को बाहर जाकर इंतज़ार करने के लिए कहा और वह चुपचाप उठकर चले भी गए।
उनके जाने के बाद डॉक्टर ने मुझसे पूछा, “ऐसा व्यवहार आप कब से देख रही हैं?”
“लगभग छह महीने से। लेकिन पिछले एक महीने में बड़े बदलाव नज़र आ रहे हैं।“ मैंने उत्तर दिया।
“क्या आप जानती हैं कि पिछले एक साल में क्या हुआ? क्योंकि मुझे लगता है कि वह किसी चीज़ के बारे में निर्णय लेने की कोशिश कर रहा है। कोई बात उसे अन्दर ही अन्दर खाए जा रही है। वह आत्म-घृणा से लड़ने की कोशिश कर रहा है, एक तरह का अवसाद कह सकते हैं।“ डॉक्टर ने कहा।
“डॉक्टर, मैं सही कारण नहीं जानती, लेकिन उनका अफ़ेयर चल रहा था और शायद उसमें ब्रेक-अप ही वजह हो सकती है। वह अपने फोन को छोड़कर हर चीज़ में दिलचस्पी खो रहे हैं। पूरे दिन अपना फोन हाथ में लिए रहते हैं, उसे एक पल के लिए भी नहीं छोड़ते। शायद उसी के एक फ़ोन कॉल या मैसेज का इंतज़ार कर रहे हों।“ मैंने उत्तर दिया।
“अवसाद का इलाज करना आसान नहीं है, लेकिन मैं एक महीने के लिए दवा बता रही हूँ। देखते हैं कि वह उन पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं।“ डॉक्टर ने साफ़गोई दिखाई थी।
लगभग एक पखवाड़ा बीत गया। केदार को मैं नियमित दवाइयाँ देती और वो चुपचाप खा लेते। एक रात मैं ड्राइंग रूम में एक सोफ़े पर बैठी थी कि केदार ने कमरे में प्रवेश किया और मेरे बग़ल में आकर बैठ गए। मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ- लेकिन सुखद अहसास के साथ। मुझे लगा कि दवाइयाँ अपना असर दिखा रही हैं।
उन्होंने मेरा हाथ थामा और याचना जैसे शब्दों में बोले, “मुझे माफ़ कर दो। मुझे पता है कि मैंने तुम्हारे साथ ग़लत किया है, लेकिन मुझे अपने जीवन में क्या करना है, क्या चाहिए था, इसे लेकर बड़ी दुविधा में अटक गया था। मैं तुम्हारे और आकृति के बीच फँस गया था, सरगुन प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो।“
यह कहते हुए उन्होंने मुझे बहुत कसकर अपनी बाँहों में भर लिया। यह इतना तंग और कसा हुआ आलिंगन था, जिसे मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था। मेरी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन मैं स्थिति पर कोई ख़ास प्रतिक्रिया करने की हालत में नहीं थी। मुझे अहसास हो गया था कि मैं केदार को खो रही हूँ।
कई महीनों बाद, उन्होंने मुझे किस करना शुरू किया। यह किसी फ्रेंच किस से कहीं बढ़कर था। इस समय मुझे इस बात का पूरी तरह अहसास था कि मैं सही हाथों में नहीं हूँ। केदार ने कभी इतनी शिद्दत से प्यार नहीं जताया था। फिर भी मैं इस अहसास का पूरा आनंद ले रही थी। उनके आलिंगन और चुंबनों की बौछार से मेरे होश उड़ने शुरू हो चुके थे और मेरा शरीर भी उनके शरीर में रमता चला गया।
मेरे लिए ये नए केदार थे, लेकिन मैं उस समय उन्हें कुछ नहीं बता सकती थी। यह वह रात थी जब मैंने प्यार को काफ़ी समय बाद महसूस किया था और समझा कि सेक्स हवस नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी हो सकता है। हालाँकि, उस रात मैंने सबकुछ खो दिया था, लेकिन पहली बार मैंने जाना कि सेक्स प्यार का ही रूप है।
उस रात ने सबकुछ बदल दिया। हमारे बीच प्यार परवान चढ़ने लगा। हालाँकि अभी भी मेरी सोच, सामान्य रहने के लिए संघर्ष कर रही थी, लेकिन जाने क्यूँ मेरे चेहरे से ख़ुशी नहीं हट रही थी। मैं उसे हटाना चाहती थी क्यूँकि यह ख़ुशी सामान्य नहीं थी। बहुत से समायोजन करने पड़ रहे थे, सोच को सँभालना सीखना पड़ रहा था। केदार के प्यार के लिए यह एक छोटी-सी क़ीमत थी जो उस समय मैं चुकाने के लिए तैयार हो गई थी।
जब सुबह उठी तो तनाव में थी। सोच पूरी तरह नहीं बदल पाई थी। फिर भी परिस्थिति से निपटने के लिए ख़ुद को कुछ समय देने के बारे में सोचा। मैंने हम दोनों के लिए चाय बनाई, और फिर एक और सरप्राइज़ मेरे सामने आया।
“सरगुन, क्या हम हमेशा की तरह नाश्ते में आलू के पराठे को आम के अचार के साथ खा सकते हैं? केदार ने पूछा।
मुझे आश्चर्य इस बात का था कि जो केदार ज़िंदगी में कभी नाश्ता करने को ही तैयार नहीं होते थे, आज नाश्ते में फ़रमाइश कर रहे थे। मैंने अपनी सोच पर लगाम लगाई और कहा, “हाँ, ज़रूर।“
मैंने नाश्ता तैयार किया और उनके सामने डाइनिंग टेबल पर लगा दिया। उन्होंने मेरी आँखों में देखा और कहा, “बैठो।“
मैं उनके बग़ल में बैठ गई। उन्होंने मेरे गालों पर हल्के से चूमा और बोले कि, “मुझे अपने हाथों से खिलाओ।“ मैंने एक ढोंगी की तरह छोटी-सी मुस्कान के साथ ऐसा ही किया, लेकिन मैं अंदर से ख़ुश नहीं थी।
“सरगुन, क्या हुआ? क्या तुम ख़ुश नहीं हो?” उन्होंने पूछा।
मैंने अपनी बेचैनी को क़ाबू में करते हुए मुस्कराकर उत्तर दिया, “नहीं, मैं ख़ुश हूँ। आप मेरे साथ हो। मैं जीवन से और क्या बेहतर उम्मीद कर सकती हूँ!“
दो-तीन दिन और बीते। मैं यह सोचकर ख़ुश थी कि दवा का असर होने में समय लगेगा और धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा, वह सारी सच्चाइयों से वाकिफ़ हो जाएँगे। वह अभी भी कम बात करते थे पर ख़ुश रहने लगे थे। मेरे साथ छोटे-छोटे खेल खेलने लग गए थे। कभी मेरे पेट पर टिक-टैक-टो बनाते और एक पेन मुझे भी दे, वहीं पर खेलते। मुझे मेहँदी का अलग रूप लगता था बस। कभी मेरा पेट उनका गोल्फ़ कोर्स बन जाता। कभी मेरी बाँहों पर या मेरी जाँघों पर कुछ पेंटिंग बनाते, कभी मेरी दोनों हथेलियों को एक साथ जोड़कर चाय तैयार करने का नाटक करते। मज़ेदार बात यह थी कि मेरे हाथों को अपने मुँह तक लेकर उस काल्पनिक चाय का स्वाद भी लेते। उन्हें इतना शरारती कभी नहीं देखा था।
वह इन सभी कामों को करने में बहुत अच्छे थे। उन्होंने मेरी कामुकता को कई गुना बढ़ा दिया था। मज़ेदार बात ये भी थी कि वह कामुक गतिविधियाँ ज़्यादा नहीं करते थे, लेकिन उनके इन खेलों से मेरी सारी इन्द्रियाँ जाग्रत हो जाती थीं। उनकी एक इच्छा बहुत महत्वपूर्ण थी और शायद वह यह सब अपनी उस एक ही इच्छा को पूरा करने के लिए कर रहे थे। वह एक बच्चा पैदा करना चाहते थे। उन्होंने तो उसका नाम भी सोच रखा रखा- केसर! यह केदार के ‘के’ और सरगुन के ‘सर’ को जोड़कर बनाया गया नाम था। सबसे महत्वपूर्ण बात, जब से यह सब शुरू हुआ था, उन्होंने शराब पीना और धूम्रपान करना बंद कर दिया था।
“सरगुन, तुम मेरी जान हो। मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ना। मैं तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता।“ यह उनका पसंदीदा डायलॉग था जो दिन में कई बार बोलते थे। ज़िंदगी इसी तरह आगे बढ़ रही थी। और फिर डॉक्टर के यहाँ जाने का दिन भी आ गया।
डॉक्टर ने केदार से कई सवाल किए। उन्होंने कुछ सवालों के जवाब नहीं दिए, लेकिन हमारी पिछली विजिट के बाद से वह बेहतर व्यवहार कर रहे थे, ऐसा डॉक्टर का भी आकलन था।
“अब बताओ, केदार के स्वास्थ्य के संबंध में आपका क्या मानना है? क्या कुछ परिवर्तन आए?” डॉक्टर ने मुझसे पूछा।
“डॉक्टर, उनकी सोच असामान्य है और अपनी ही दुनिया तक सीमित है। हालाँकि वह अपने तरीक़े से ख़ुश रहने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मैं ख़ुश नहीं हूँ। वह नाटकीय रूप से बदल रहे हैं। उन चीज़ों की कल्पना कर रहे हैं जो वास्तविकता में उनके आसपास नहीं हैं। जब वह सरगुन नाम को पुकारते हैं तो ख़ुद को एक अलग आयाम में, दूसरी दुनिया में ले जाते हैं। मैंने उन्हें इतना रोमांटिक और बचकाना व्यक्ति कभी नहीं पाया जितना वह आजकल अपने व्यवहार में हैं।“ मैंने उत्तर दिया।
“सुनो आकृति…” डॉक्टर ने ये शब्द कहे ही थे, लेकिन वह अपना वाक्य पूरा नहीं कर सकी क्योंकि अचानक से केदार चिल्लाने लगे थे। डॉक्टर को समझते देर न लगी कि केदार अपनी कल्पना पर चिल्ला रहा था।
“आकृति! तुम यहाँ क्या कर रही हो? जाओ… चली जाओ… अब तुम मुझे सरगुन से अलग नहीं कर सकतीं। सरगुन मेरी ज़िंदगी है।“ वह घबराकर बात कर रहे थे और केबिन का सामान उठाकर इधर-उधर फेंक रहे थे।
डॉक्टर ने तुरंत अपनी सीट छोड़ी और हवा में कुछ धक्का देने का नाटक किया और दरवाज़ा बंद कर दिया। उसने एक इंजेक्शन लगाकर केदार को शांत रखने की कोशिश की। डॉक्टर ने मेरी तरफ़ देखा और कहा, “वो आपको सरगुन समझता है।“ कुछ पल रुककर डॉक्टर ने आगे कहा, “केदार की स्थिति बहुत नाज़ुक है। वह मतिभ्रम कर रहा है जो अच्छा नहीं है। यह उसके लिए बहुत ख़तरनाक है।“
“मुझे इस बात की जानकारी क़रीब 20 दिन से है। लेकिन इन 20 दिनों में केदार ने मुझे वो हर ख़ुशी दी, जिसकी मैं हक़दार थी परंतु पहले कभी नहीं मिली। यदि नाम या काल्पनिक पहचान का परिवर्तन काम कर सकता है तो मेरे लिए इनका होना ही बेहतर था। मेरी पहचान के साथ यह छोटा-सा हेरफेर मेरे प्यार को पाने के लिए मैनेजेबल है… मेरे हिस्से का प्यार। समय लगा, लेकिन मैंने ख़ुद को सँभाल लिया है।“ मैंने कहा।
“आप अपने साथ और केदार के साथ भी ग़लत कर रही हैं। यह सही तरीक़ा नहीं है।“ डॉक्टर ने कहा।
“ठीक है… तो प्लीज़ मुझे समझाएँ कि क्या सही है और क्या ग़लत? आप जो करने का सुझाव देंगी, मैं वो करूँगी। केदार जिस तरह की बीमारी से जूझ रहे हैं, उससे आप अच्छी तरह वाकिफ़ हैं, यह लाइलाज है। डॉक्टर! मैं स्वार्थी नहीं हो रही हूँ, लेकिन मैं केवल उनकी ख़ुशी चाहती हूँ और आख़िरी तक उसकी ख़ुशी चाहती रहूँगी। मैं उनका इलाज जारी रखूँगी, मैं वादा करती हूँ।“ मैंने डॉक्टर से कहा और केदार को लेकर क्लिनिक से निकल गई।
कुछ और महीने बीत गए। मैं गर्भवती थी, केदार की हालत ख़राब होती गई। उन्होंने किसी से भी मिलना कबका बंद कर दिया था, लेकिन अब तो वह अपने आसपास के माहौल से भी पूरी तरह कट गए थे। अपना सारा समय मेरे बेबी बंप के साथ खेलने में बिता रहे थे। वह अब केवल मुझे पहचानते थे। ‘मुझे’ कहना ग़लत होगा, वह अब सिर्फ़ ‘सरगुन’ को पहचानते थे। मुझे अंदेशा था कि एक न एक दिन यही होगा। लेकिन मैं उनके लिए दवा, इलाज और उनके साथ रहने के अलावा, उनकी समस्या को हल करने के लिए कुछ नहीं कर सकती थी।
घर पर आज उनकी डॉक्टर को आना था। केदार अब डॉक्टर के पास भी नहीं जाते थे। उन्हें हरदम डर लगा रहता था कि कहीं मुझे और हमारे होने वाले बच्चे को कुछ हो न जाए। डॉक्टर के साथ दोस्ताना व्यवहार हो चुका था, इस नाते भी वो घर पर आ जाती थी। दरवाज़े की घंटी बजी। मैंने दरवाज़ा खोला। डॉक्टर ही थी। वो अंदर आई और मैंने दरवाज़ा बंद कर लिया।
मैंने उसे पानी दिया और उसके साथ बैठ गई।
“अब कैसा है वो?” उसने पूछा।
“हमेशा की तरह सब अच्छा। केसर का बेसब्री से इंतज़ार है।“ मैंने उत्तर दिया।
“मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप इसे मैनेज कर पाएँगी।“ डॉक्टर ने कहा।
“नहीं डॉक्टर, हम दोनों ने अपने-अपने प्यार के लिए यह किया। मैंने अपने प्यार, केदार, के लिए किया और केदार ने अपने प्यार, सरगुन, के लिए किया।“ मैंने उत्तर दिया।
“आकृति, यह एक बहुत ही मुश्किल और विचित्र स्थिति है जिसे आपने बहुत अच्छी तरह से सँभालने की कोशिश की।“ डॉक्टर ने कहा।
“नहीं डॉक्टर, वास्तव में सभी बातें हमेशा समान थीं, सिवाय इसके कि वह सरगुन के साथ अपने ब्रेकअप को नहीं सँभाल सके और इस मनोवैज्ञानिक स्थिति में आ गए कि वास्तविक व्यक्ति और उसकी कल्पना के बीच अंतर करने की काबिलियत खो बैठे। अंततः उन्होंने मुझे, अपनी पत्नी आकृति को, सरगुन के रूप में प्यार करना शुरू कर दिया। शेक्सपियर ने भी कहा था, ‘जुनून और कुछ नहीं बल्कि शुद्ध प्रेम के बेहतरीन हिस्से से बनता है।‘ उन्होंने मेरे द्वारा अपनाए गए जुनून से, अपने हिस्से के जुनून को पूरा किया या आप इसका उल्टा भी मान सकती हैं। अब मेरी चिंता सिर्फ़ इतनी है कि केसर के पैदा होने के बाद क्या होगा?” मैंने कहा।
“इससे आपका क्या मतलब? केदार को केसर चाहिए न? सही कह रही हूँ न? डॉक्टर ने सवाल किए।
“हाँ यह सच है। केदार सिर्फ़ दो नाम पहचानते हैं, एक सरगुन और दूसरा केसर। एक दिन संयोग से मुझे केदार का फोन मिला और मैंने उनके मैसेज चेक किए। वहाँ मुझे उनके ब्रेकअप की वजह पता चली। सरगुन प्रेग्नेंट थी, लेकिन केदार बच्चे को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाए। सरगुन ने गर्भपात तो करा लिया पर इस बात से वो उबर न सकी और अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।“ मैंने आँखों में आँसू भरकर जवाब दिया।
लंबी चुप्पी के बाद डॉक्टर ने मुझे केदार के लिए दवाइयाँ दीं और चली गई।
और वह दिन आया जब मैंने एक सुंदर बच्ची को जन्म दिया, जिसका नाम पहले से ही तय था- केसर। मैं उसकी प्राकृतिक माँ थी परंतु उसके पिता, मेरे सामाजिक पति, भावनात्मक रूप से मेरे पति नहीं थे। फिर भी केसर मेरे पति का इकलौता सपना है, जो मेरी आँखों के सामने है।
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